अभिलेखों से प्राप्त सूचनाओं की भी एक सीमा होती है। अक्षरों के नष्ट हो जाने या उनके हल्के हो जाने के कारण उन्हें पढ़ पाना मुश्किल होता है। इसके अलावा अभिलेखों के शब्दों के वास्तविक अर्थ का पूर्ण ज्ञान हो पाना सरल नहीं होता। भारतीय अभिलेखों का एक मुख्य दोष उनका अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन भी है। फिर भी, अभिलेखों में पाठ-भेद का सर्वथा अभाव है और प्रक्षेप की संभावना शून्य के बराबर होती है। वस्तुतः अभिलेखों ने इतिहास-लेखन को एक नया आयाम दिया है जिसके कारण प्राचीन भारत के इतिहास-निर्माण में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
कलचुरि राजवंश – कलचुरि प्राचीन भारत का विख्यात था। इस वंश की शुरुआत राजा ईश्वरसेन उर्फ महाक्षत्रप ईश्वरदत्त ने की थी।'कलचुरी ' नाम से भारत में दो राजवंश थे- एक मध्य एवं पश्चिमी भारत में जिसे 'चेदी' 'हैहय' या 'उत्तरी कलचुरि' कहते हैं तथा दूसरा 'दक्षिणी कलचुरी' जिसने वर्तमान कर्नाटक लोकप्रसाशन के क्षेत्रों पर राज्य किया।
सिक्खों और ब्रिटिश सेना के बीच इतिहास में कई लढाईयाँ हुई थी। जब तक महाराजा रणजीत सिंह जिन्दा थे तब तक ब्रिटिश अधिकारियो को सुल्तेज नदी पार करने में कभी सफलता नही मिली। उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने पुरे पंजाब को हथियाँ लिया था और सिक्ख शासको का पतन कर दिया था।
मुगल साम्राज्य के तहत व्यापार का विकास
सूरी साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में स्थित पश्तून नस्ल के शेर शाह सूरी द्वारा स्थापित एक साम्राज्य था जो सन् १५४० से लेकर १५५७ तक चला। इस दौरान सूरी परिवार ने बाबर द्वारा स्थापित मुग़ल सल्तनत को भारत से बेदख़ल कर दिया और ईरान में शरण मांगने पर मजबूर कर दिया। हेमचंद्र विक्रमादित्य साम्राज्य[संपादित करें]
इतिहास एक से अधिक तरीकों से एक अध्ययन के रूप में मूल्यवान है। इतिहास पढ़ाने के मूल्य हैं-अनुशासनात्मक, सूचनात्मक, शैक्षिक, नैतिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, राजनीतिक, राष्ट्रवादी,
क्या आप जानते हैं भारतीय इतिहास की इन महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में?
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इस ग्रंथ से शेरशाह के शासनकाल का विस्तृत इतिहास पता चलता है। इस ग्रंथ से शेरशाह के शासन- सुधारों, फरीद के जागीर-प्रबंध की बाबर से मुलाकात, हुमायूं से संघर्ष एवं हुमायूं की असफलता के कारणों का वर्णन है। अब्बास खां ने शेरशाह की राजस्व-प्रणाली, सैन्य-संगठन तथा न्याय-प्रबंध पर अच्छा प्रकाश डाला है तथा उसे जन हितैषी शासक बताया है।
मुगल बादशाह जहाँगीर के विषय में मौतमिद खाँ बख्शी द्वारा रचित इकबालनामा-ए जहाँगीरी से भी पर्याप्त जानकारी मिलती है। यह ग्रंथ ‘तुजूक-ए-जहाँगीरी’ से अत्यंत प्रभावित है।
अमीर खुसरो मध्यकालीन भारत के बहुत बड़े विद्वान थे। उनका पूरा नाम अबुल हसन यामिन उद्-दीन खुसरो था। वह छह सुल्तानों के दरबार में रहे थे। उसने बलबन से लेकर मुहम्मद तुगलक तक का इतिहास लिखा है। उसने युद्ध में भी भाग लिया था। उसके ग्रंथ ऐतिहासिक दृष्टि से अमूल्य हैं, जो इस प्रकार हैं- किरानुस्सादेन[संपादित करें]
मुहम्मद गौरी (मुइजुद्दीन मुहम्मद बिन साम गोरे)
पतंजलि द्वारा रचित “महाभाष्य” तथा कालिदास द्वारा रचित “मालविकाग्निमित्र” से शुंग वंश के इतिहास के बारे में ज्ञात होता है। शूद्रक द्वारा रचित “मृच्छकटीकम” तथा दंडी द्वारा रचित “दशकुमारचरित” से गुप्तकाल की सामजिक व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है। बाणभट्ट द्वारा लिखी गयी हर्षवर्धन की जीवनी “हर्श्चारिता” में सम्राट हर्षवर्धन का गुणगान किया गया है। जबकि वाकपति द्वारा रचित “गौडवाहो” में कन्नौज के शासक यशोवर्मन और विल्हण के “विक्रमांकदेवचरित” में कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य षष्ठ की उपलब्धियों का गुणगान किया गया है।
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